01 नवंबर 2019

रचना :- घनश्याम यादव..! رکھنا گھنشیام یادو ..!

हुयी है जब से मोहब्बत आपसे 
होश में आने की अब जिदद् किसे है ........!
हुयी है जब से मोहब्बत आपसे
मोहब्बत में बिछड़ जाये ऐसी फितरत अब पसन्द किसे है...! 
हुयी है जब से मोहब्बत आपसे 
साथ जब चलने की कसम है तो अब खोने की डर किसे है....!
हुयी है जब से मोहब्बत आपसे
इस रद्दी जिंदगी की हसीन समा हो अब आपको भूलना मंजूर किसे है ....!
हुयी है जब से मोहब्बत आपसे 
अंधेरो में चलना अब पसन्द किसे है...!
हुयी है जब से मोहब्बत आपसे
यादों के पन्नों को पलट पलट के गुजर करना अब शौख किसे है ....!
हुयी है जब से मोहब्बत आपसे 
कानो में हेडफोन लगा के गीतों को सुनना अब पसन्द किसे है.....!
हुयी है जब से मोहब्बत आपसे
अकेले सफर में चलना अब पसन्द किसे है...!
हुयी है जब से मोहब्बत आपसे
यूट्यूब पर फ़िल्म देखना अब पसन्द किसे है.....!
हुयी है जब से मोहब्बत आपसे

हीरो बनके रहना है अब तो जैसे तैसे वाली जिंदगी अब पसन्द किसे है......!
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तेरे-मेरे धर्म में श्रेष्ठता का किस्सा किसने जोड़ दिया..!
हालत-ए-मुल्क हिंदुस्तान के इंसान को नफरतो के बीच जोड़ दिया....!

इश्क़ मुल्क से दास्तां ही रह गया 
जिधर देखो उधर दहशतगर्दों  का बोल बाला हो गया

खुदा, ईश्वर, गॉड जिसको साक्षात् किसी ने देखा नही 
देखो कुछ पगले ने उसको राजदूत बोल सत्ता के शीर्ष पदों बैठ गया 

ढ़ोल, मजीरा बजा-बजा के धर्म की अस्मिता बढ़ा गया 
यह वही धर्म है जहा सिर झुकने थे 
आजकल जिसको देखो उसी सिर को कलम करने की उत्सुकता अपनी बता गया



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मजाकिया अंदाज में पंक्ति..! jssc द्वारा निकाली गयी वेकेंसी में 1000 रुपये का ऑनलाइन फी रखा गया जो बेरोजगार युवा लोगो के लिए आर्थिक बोझ है ..!
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दिल के टुकड़े-टुकड़े करके,
 सब छात्र लोगिन से ही पैेसवा ऐठ लीजिये...!
पेपर चांदी के होखिहन या माउस सोना के 
 ओकरो कीमत भी हमलोगिन से ही वसूल लीजिये....!
मुनाफे की आंदोलन में धीरे-धीरे,
 हमहि सब छात्र लोगिन से लूट लीजिये....!
बचवा लोग पास होखीहें के फेल,
 वेकेंसी के पहले ही अप्लाय के बहाने करोड़ो कमा लीजिये...!
कमजोर लोगिन के सरकार हई,
 आप कह-कह के जेतना बने मुर्ख बना लीजिये...!
शिक्षित बेरोजगार युवा लोगिन की गलियारन में,
 अपनहि थू-थू करवा लीजिये....!
क्या है ये ,क्यों है ये, क्या खबर,
 लाठी चार्ज तो आम बात है,
खुद के तानाशाही रवैया से बचा लीजिये....!
 अगर अबो से पेट नही भरा,
तो गिन चुन के बचे खुचे दिनवा है,
 चुनाव से पहिलहि आपन बेज्जती भरपेट करवा लीजिये....!

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इस नादां इश्क़ में मुझे मेरी परछायी चलना सिखा रही है...!
एक ख्वाब की दुआ थी वो आजकल असर दिखा रही है...!

नजरो से शुरू हुयी कहानी दिल में उतरना बता रही है...!
एक अजब सी सनक है जो  परेसानी बढ़ा रही है....!
कभी बढ़ी न थी ये बेकरारी गजब की उलझन में फसा रही है....!

इस नादां इश्क़ में मुझे मेरी परछायी चलना सिखा रही है....!
एक ख्वाब की दुआ थी वो आजकल असर दिखा रही है...!

व्यस्तता जीवन की बेरुखी बढ़ा रही है...!
कल्पना मोहब्बत की आजकल हकीकत बना रही है....!


शब्द और शब्दों के अर्थ हर रोज कहानी बना रही है...!
इस बेजुबां इश्क़ को इम्तहां के दौर से गुजारा करवा रही है...!

इस नादां इश्क़ में मुझे मेरी परछायी चलना सिखा रही है...!
एक ख्वाब की दुआ थी वो आजकल असर दिखा रही है...!

नजरो से शुरू हुयी कहानी दिल में उतरना बता रही है...!
एक अजब सी सनक है जो  परेसानी बढ़ा रही है....!
कभी बढ़ी न थी ये बेकरारी गजब की उलझन में फसा रही है....!

इस नादां इश्क़ में मुझे मेरी परछायी चलना सिखा रही है....!
एक ख्वाब की दुआ थी वो आजकल असर दिखा रही है...!

व्यस्तता जीवन की बेरुखी बढ़ा रही है...!
कल्पना मोहब्बत की आजकल हकीकत बना रही है....!


शब्द और शब्दों के अर्थ हर रोज कहानी बना रही है...!
इस बेजुबां इश्क़ को इम्तहां के दौर से गुजारा करवा रही है...!

अकेले में भी लबो पे मुस्कुराहट दिखा रही है...!
बने कुछ ऐसे यादों के लम्हे पहले से संकेत दिखा रही है...!

इस नादां इश्क़ में मुझे मेरी परछायी चलना सिखा रही है...!
एक ख्वाब की दुआ थी वो आजकल असर दिखा रही है..!

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मेरी प्यारी हिंदी..!
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राष्ट्रभाषा और मातृभाषा के चक्कर में
अपनी प्यारी हिंदी पीस गयी 
क्षेत्रवाद भाषावाद की राजनीति में
हिंदी फ़स के रह गयी
संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी बोल बोल
हिंदी का मान बढ़ा गया 
जब बारी आयी राष्ट्रभाषा घोषणा की तो
कोई कौआ और कोयल की कहानी सुना गया
हाय रे मेरी प्यारी हिंदी 
तुझे बोलने वाले भी देखो 
अंग्रेजी के सामने शर्मा गया 
विश्व की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा रहते
आज घुटनो पे देखो न जाने क्यों आ गया 
हर माँ-बाप अपने बच्चों को 
अंग्रेजी की तालीम में फ़सते चला गया 
और हिंदी को तो यूही बोल लिया 
किन्तु अंग्रेजी बोलने के लिये मलाल बता गया..!
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विरह इस वसुंधरा का
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विलख विलख के रो रही हमारी यह वसुंधरा....! 
भाषावाद के चक्कर में तिल-तिल मर रही वसुंधरा....!

जुड़-जुड़ के रहे लोग, सुरक्षित रहे यह हमारी वसुंधरा.....!
कुछ लोग अलग-थलग करने पे, तुले है यह वसुंधरा.....!

हर प्रान्त की एक ही भाषा हो, विनती कर रही वसुंधरा...! 
हिंदी के सम्बोधन से हो अभिनन्दन, सबको बता रही वसुंधरा...!

मातृभाषा की गुणगान में, राष्ट्रभाषा के लिए कराह रही वसुंधरा.....!

एकता अखण्डता की सारथी है हिंदी बता रही वसुंधरा....!


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अपनी तन्हाई का वो गीत लिखेंगे
टूटे वादों का वो बात लिखेंगें
वफ़ा से बेवफा तक जिक्र करेंगे 
ख़ुशी से बदलते गम लिखेंगे 
तेरी हर एक मैसेज अब बिना पढ़े डिलिट करेंगे
ताज्जुब तो तब होगा जब 
तेरी वो इमोसशनल ब्लैकमेल वाली एहसास लिखेंगे
बड़े मजे में हो न आजकल 
तेरी हर एक एक वो खोखली जज्बात लिखेंगे
नैन झुकाये गम्भीर मुद्रा की रूपधारनि 
तेरे घड़ियाली आंसुओ का नमकीन स्वाद लिखेंगे 
जलते-बुझते, बुझते-जलते इस जिंदगी का 
वो बीते हसींन रंगीन ख्वाबो को बेख़ौफ़ लिखेंगे
कृष्ण के तरह गीता उपदेश तो नही लिख सकते 
अपनी इस जिंदगी की छोटी सी सार लिखेंगे

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मुझे मेरे पिता की फ़िक्र होने लगी है..!!

मुझे मेरे पिता की फ़िक्र होने लगी है
ढलते उम्र की दवा चलने लगी है
हल्के हल्के दर्द बदन में देने लगी है
सर्द हवाओ के मौसम उन्हें पटकने लगी है
मुझे मेरे पिता की फ़िक्र होने लगी है
मुझे भी अच्छे पुत्र बनने की चाहत जगने लगी है
रूठे पिता को मनाने की जिदद् में,मेरी माँ भी मेरा साथ देने लगी है
किन हालातो में है मेरे पिता अब तो हर वक्त चिंता सताने लगी है 
मुझे मेरे पिता की फ़िक्र होने लगी है
कभी कभी पिता के कड़वाहट बोल अब तो हस के टालने की आदत होने लगी है
लड़कपन वाली टाल मटोली की आदत भी मेरी सुधरने लगी है 
उनके कहे मुताबित चलने की ख्वाहिस होने लगी है 
मुझे मेरे पिता की फ़िक्र होने लगी है 
भुखे पिता कोें खिलाने के लिये मेरे भुखे रहने की धमकी मेरी माँ भी देने लगी है 
मुझे मेरे पिता की फ़िक्र होने लगी है
मुझे भी अच्छे पुत्र बनने की ख्वाहिसें जगने लगी है..!! 

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हम तो अकेलेपन के शिकार हो गए 
मुझको सम्भाल दोस्त जरा 
कुछ दिन पहले ही डॉक्टर मुझको इश्क़ का मरीज बता  गए
शक के सन्देह में रिश्ते टूट गए 
इश्क़ के भुत जो चढ़े थे 
अब तो वो भी उतर गए 
चले थे दूसरा इश्क़ फरमाने 
अब तो उसके भी भ्रम टूट गए 
बेवक्त वक्त दिया करते थे जिन्हें 
मेरे कुछ खास रिश्ते भी यु ही टूट गए 
हदों की दीवार फाँदें थे कभी 
कुछ अपने ही सम्भाल गए

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मेरे वो अहसास, मेरे वो जज्बात..!
सब घुटने टेक दिए..!
रिश्तों की दीवारे दरकती, उससे पहले ही खुद को कुर्बान कर दिए....!
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जब जब मेरे अल्फ़ाज उलझते गए 
आपके मासूमियत को याद करते गए 
एक दौर ऐसा भी आया जब आपने ही मुझको सादगी का शिकार घोषित करते गए
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प्रेम की सियासत में हल्के मुस्कराहट वाले मतों से जीत मेरी हुई.....!
अचानक पता चला की विजयी माला तो किसी और के गले में पड़ी..!
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लिखने की कोशिश में आज कलम भी सिसक गयी 
आज कलम भी तड़प-तड़प के रो गयी 
नादान इश्क का किस्सा मुझसे पहले मेरी कलम सुना गयी 
इश्क में जख्म हमने झेले और कलम सबको बता गयी 
उनके याद में इतना रोया की मेरी कलम मुझसे नाता तोड़ गयी..!
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मोहब्बत भी गजब का स्वरोजगार है...!

जहा पर किसी भी सरकार की विज्ञापन और मेरी डिग्री की जरुरत नही....!
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मेरे वो अहसास.., मेरे वो जज्बात.., 
सब घुटने टेक दिए..!
रिश्तों की दीवारें दरकती,
उससे पहले ही खुद को कुर्बान कर दिए....!

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जिन घरों में पिता का साया है..,
बेख़ौफ़ हर कोई सोया है..!
सुख चैन की जिंदगी पिता पे ही पाया है..,
जब अपने पे आया है..!
तब पिता की अहमियत समझ में आया है..!
हालात ए बयां क्या करु..,
हर पिता ने बच्चों पे करुणा दिखाया है..!
लानत है कुछ बेटो पर जिन्होंने पिता को..,
वृद्धा आश्रम का दरवाजा दिखलाया है..!
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जितना जरुरी है..!
देश की तरक्की ख़ातिर मतदान..! 
नए रिश्तो खातिर कन्यादान..!! 
मोक्ष पाने के लिए गौदान..!
उतना ही जरुरी है..,
अपनों परायो के जान बचाने खातिर रक्तदान..!!
आओ चलकर करे रक्तदान..! 
बचाये अपने परायो की जान..!!
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उलझे अल्फाजो को हम युही सुलझाते रहे 
एक वो है जो खुद को कहीं और उलझाते रहे..!
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काँटों भरी राह पे चलकर,
आखिर मोहब्बत उनसे हो गयी...! 
जैसे ही कुछ अच्छे होने थे.., 
तभी किसी की नजर लग गयी..!
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वक़्त की बेबसी मुझको यु ही तड़पाती रही..! 
एक आप है जो पा के नए आशियाने मुस्कुराती रही..!!
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हाल-ए-इश्क़.., सवाल-ए-इश्क़..!
वफ़ा के मैराथन में जब साथ चलना न था..!
तो कदम बढ़ाया ही क्यों...?
उम्मीद की दीवार में जब ईंट जोड़ना न था....! 
तो मोहब्बत का नींव खोदा ही क्यों....?
अरे ओ बेवफा जब दग़ाबाज़ी ही करनी थी..! 
तो एहसासों का दीप जलाया ही क्यों...?
मेरे जज्बातों का जब कदर  करना न था..!
तो जरा बता न इतने करीब लाया ही क्यों..?
वफ़ा के मैराथन में जब साथ चलना न था....!
तो कदम मेरे साथ बढ़ाया ही क्यों..?
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वफ़ा के मैराथन में जब साथ चलना न था....!
तो कदम बढ़ाया ही क्यों...?
उम्मीद की दीवार में जब ईट जोड़ना न था....! 
तो मोहब्बत का नींव खोदा ही क्यों....?
अरे ओ बेवफा जब दगाबाजी ही करना था 
तो एहसासों का दिप जलाया ही क्यों...?
मेरे जज्बातों का जब कदर करना न था..!
तो जरा बता न इतने करीब लाया ही क्यों..?
वफ़ा के मैराथन में जब साथ चलना न था....!
तो कदम मेरे साथ बढ़ाया ही क्यों..?
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वक्त की बेबसी का हम क्या कहे 
कुछ बाते हमे झकझोरते रहे 
वो मस्तियों के झूले में झूलते रहे 
और हम है की अंदर ही अंदर घुटते रहे
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तन्हाई तो भरी महफ़िल में भी दस्तक दे देती है 
अकेले छोड़ हर रोज के रुला देती है 
राते भी अब तो बेवफा नजर आती है 
आँखे खुली रहती है और सुबह हो जाती है 
वफ़ा के मैराथन में साथ तो वो चलती है 
पता नही क्यों जानबूझ के पीछे रह जाती है
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टूटे दिलों से रोना भी न आया..! 
जब-जब देखा आईने में.., 
खुद को ही खोया हुआ पाया..!
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तन्हा सफर में यादो का बस बसेरा है.., 
मगर इस बार एक चौकीदार का कड़ा पहरा है..!
(चौकीदार = पत्नी)
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टूटे दिलो के दास्तां तुझे सुनाऊ कैसे..? 
बेदर्द इंसान इस दिल की बाते तुझे बताऊ कैसे..? 
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हा गम में हम है ,मजे में तुम हो..!
तुझे फर्क भला पड़े कैसे..!!
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नासमझ इस जिंदगी ने बहुत रुला दिया..! 
वफ़ा की उम्मीद में बेवफा से मिला दिया..!! 
किस्मतों का दोष दे खुद को तसल्ली दे दिया..!
ऐ खुदा तेरे चौखट पे भले दस्तक ना दिया..! 
मगर उन्हें तेरे से कम अहमियत भी न दिया..!! 
हसरतो की चाहत में सब सुध-बुध गवा दिया..! 
नासमझ इस जिंदगी ने बहुत रुला दिया..! 
वफ़ा की उम्मीद में बेवफा से मिला दिया..!! 
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अतीत के पन्नों से..!
रिश्तों के मजार पर चाहे जितना सर पटक लो..! 
सपने पुरे होने है पत्थरो के सामने ही..!!
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खुशियो के बाजार में ख़ुशी बिक रही थी..! 
बस कीमत मेरे हैसियत की नही थी..!!
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तुझे इग्नोर करने में मुझे अच्छा नही लगता..! 
समझने की कोशिश करो..!! 
आपको इस तरह से भटकना मुझे अच्छा नही लगता..!
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रिश्तो की जमा पूंजी मैंने अक्सर बचाई है..! 
इस बार कोशिश लाख हुयी..,  
फिर भी मैंने गवाई है..!!
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दिल टूटने का फ़िक्र न था.., 
बस प्यार होने से डर था..!
कुछ प्यार ऐसा..,
जो हुआ भी नही और टुटा भी नही..! 
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एकतरफा प्यार..!
रिश्ते भी चार विकल्प आंसर के साथ जुड़ रहे है..!
जिसपे भरोसा ज्यादा हो..! 
अक्सर वही गलत हो जा रहे है..!
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राहे मुसाफिर को जाना कहा था..? 
उसे अच्छे से पता था..!
फिर भी खड़े हो गए वही..! 
जहा कुदरत का पिछले बार कहर बरसा था..!!
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प्रेम एक बन्धन है..! 
प्रेम एक अर्पण है..!
प्रेम एक समर्पण है..! 
प्रेम एक अनोखा संगम है..!
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"मुस्कुराना" तो जनता था..! 
मगर "हंसने"की की आदत.., 
आपके चाहत ने जगा दिया..!   
अब लग रहा है "मुस्कराना" ही ठीक था मेरा.., 
आपने तो बिलकुल ही न जाने किन चौराहो पे ला के फ़सा दिया है
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किसी को जितने का हर वक्त बस एक बहाना है..!
मेरे हारने का शौख रिश्तो को निभाना है..!!
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अपनी मोहब्बत की वफाओ का कभी हमने किसी से जिक्र न किया 
शायद इसी वजह से घुट घुट के आज मरना सीखा दिया
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तेरे बिना जिंदगी जरूर गुजार लेंगे हम 
इश्क का भी बुखार उतार लेंगे हम 
बस जरूरत दवा की नही 
तेरे दुआ और मेरे ख़रीदे दारू की जरुरत है
आपके दिये कसमो ने हमे रोने ना दिया
दोस्तों के साथ बैठ आपके गम को भुला दिया
हा हमने आपको याद ना करने का अब तरकीब भी निकाल लिया
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कई दशको पुराना इश्क़ आज भी जवां है
पुरे करू आज अधूरे ख्वाब.....! 
बस आपके एक बार पलके उठने का इंतजार है 
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याद में..!
तेरे बिना जिंदगी जरूर भले गुजार लेंगे हम..!
आप के दूर जाने से क्या होगा..! 
ये इश्क का बुखार हम इतनी आसानी उतरने न देंगे हम...!
मेरे मोबाईल बन्द होने पर कोई है जो परेशान रहते है..! 
प्यार इस कदर हमसे करते है की हर पल आ-आ के खिड़कियों पे परेशान रहते है..!
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उसने अपनी वफाओ का कभी जिक्र न किया..!
फिर क्यों उस बेवफाओ का हमने फ़िक्र किया..!
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रहमतो के बादल तू बरसाता नहीं..! 
मुझे पता है तू भी जलता है..! 
तुझे भी मेरा प्यार बर्दाश्त नही
तेरा नाम लिख रखा हूँ कलम से
मिट जाने का डर है  
आपके साथ बीते कुछ लम्हे याद रहे 
बस एक बार आपको अपनी बाहो में
 कुछ पल समेटे रखने का मन है
मुह फेरने वाले हर कोई बेवफा नही होते है 
वफ़ा की उम्मीद में दिन रात जल रहे होते है
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इश्क..!
भगवान न करे ये पगलपंथी सवार हो 
अगर हो तो हम घोड़ी पे सवार हो 
दरवाजे पे उनके मेरा 
बारात हो 
इश्क का न बुखार हो 
अगर हो तो उनके दरवजे पे बारात हो
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आशा की किरण अधर में न लटक जाये..! 
उम्मीद की उमंग कही गम में न बदल जाये..! 
बदलते वक्त की वक्ता हम सबको मायुश न कर जाये..!

दिल दिमाग की तेज सेतु जल्द निर्माण हो जाये..!
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अपनी जिद्द प्यारी है..!
किसी का प्यार.., प्यारा नही..,
अपनी जिद्द प्यारी है..!
सौ में से नब्बे लोगों की यह घातक बीमारी है..!!
ऐसा लग रहा है..,
यही दुनियादारी है.., यही लोकाचारी है..!
पता नही क्यों बेवजह बेकरारी है..!!

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हसरतो की चाहत में सब सुध-बुध गवा गवां दिया..!
नासमझ इस जिंदगी ने बहुत रुला दिया..!
मेरे हँसते तस्वीरों को देख कुछ ने ताना मार दिया
तेरे जख्मो पर किसने मरहम लगा दिया..!
ग़ालिब ने भी मुस्कुरा के कहा..,
किसी ने खुद को मोदी का दूत बता दिया..!

मेरे टूटे बिखरे आशियाने को इमारत बना दिया..!!
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यह उन्हें अच्छे से पता था.., 
मेरे पैरों में हालात की बेड़िया थी..! 
लेकिन कुछ लोगों देख अपराधी समझ बैठे ..!

कुछ बेवफा ..! तो कुछ जालिम कह बैठे...!

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तू फ़िक्र में पागल मत होना..!
जब भी याद आये..,
व्हाट्सऐप का डीपी खोल के देख लेना..!
गुस्सा ठंडा हो जाये जब..,
मेरे डीपी को अपने गैलेरी में सेव कर लेना..!
फिर कॉल करना और कहना..,
आई लव यू सोना..!

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मुंह फिरा के चल दिया करते है..!

बड़ी आसानी से अक्सर लोग..,
जज्बातों का जहर पिला दिया करते है...!
एहसासों पर कफ़न चढ़ा के अक्सर लोग.., 
मुंह फिरा के चल दिया करते है..!

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अनजान चेहरे भी..!

कभी-कभी अनजान चेहरे भी.., 
दिलों में खास जगह बना जाते है..! 
कभी-कभी किसी को लगने वाली बकवास बात..,
ये शख्स अच्छे मुकाम तक पहुचा जाते है..!! 

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अपने क्षेत्र का कुछ ऐसा मतदान केंद्र जहाँ अधिकतर शिक्षित लोग रहने के बाबजूद वोट डालने नही गए..! जिसका परिणाम यह हुआ की सबसे कम मतदान वाला केंद्र बना..! हमें उन ग्रामीण कृषक एवं मजदूरों से सीख लेनी चाहिए जहाँ आज भी मतदान का प्रतिशत ज्यादा रहता है..! आखिर क्यों नही गए..? जानने के लिए पंक्ति के रूप उन्हीं को पढ़े..!
वोट और नोट..!
हम पैसे वाले लोग है.., 
हम वोट नही हम नोट देते है.., 
हम पढ़े-लिखे लोग है.., 
चुनाव कैसे जीता जाये ट्रिक बेचते है.., 
हम पढ़े-लिखे लोग है.., 
हम बोली में अरबी बकते है..,
हम पढ़े-लिखे लोग है..,
चौक-चौराहों में राजनीति करते है..,
हम पैसे वाले लोग है आंदोलन करो हम तुरंत पैसा भेजते है..,
हम पढ़े लिखे लोग है.., 
हम तो सत्ता चलाते है.., 
हम पैसे वाले लोग है.., 
हम वोट नही नोट देते है.., 
जब-जब सत्ता को जरूरत पड़ती है.., 
रोटी लालच का युहीं फेक देते है.., 
हमे कौन क्या बतलायेगा.., 
हमरे यहा तो नेता जी माथा टेकते है.., 
हम पढ़े-लिखे पैसे वाले लोग है.., 
हर बार सत्ता हम ही तो चलाते है.., 
हम पैसे वाले लोग है.., 
ऐसे नेता तो हर साल पैदा करते है..,
हमे कौन क्या करेगा..,
हम पैसे वाले लोग है ..,
हम वोट नही नोट देते है..,
व्यपार में कैसे मुनाफा हो ज्यादा ध्यान हम उस पर देते है..,
हम पैसे वाले लोग है.., 

हम वोट नही नोट देते है..!
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बेवजह..!
बेवजह छोड़ जाता है कोई ..,
पूछने पर अनेकों वजह बता जाता है कोई..! 
बड़ी जोर-जोर का दरवाजा.., 
ठकठका रहा कोई..! 
जब मिला शिकायत..,
कार्यालय का पता पूछ रहा कोई..! 
अब तो वो खूबसूरत लम्हा ना याद रहा कोई..! 
पूछने पर अनेको वजह बता रहा कोई..! 
आज-कल मेरे नाम पे तमतमा रहा कोई..! 
असमंजस की जिंदगी में अब है न साथ कोई..! 
पागल कह के दरकिनार कर रहा हर कोई..! 
वर्षो पहले से न शिकवा न गिला कोई..! 
लगता है चौराहे पे सजा दे रहा कोई..!
नाराज है बेवजह कोई..! 
दूसरा रास्ता चुनने का वजह होना चाहिए न कोई..! 
बेवजह छोड़ जाता है कोई..! 
पूछने पे अनेको वजह बता जाता है कोई..! 
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समस्या की स्याही से..,  बुरा न लगे मेरी बोली से..!
जाम..!
अब तक जाम की कोई भी ठोस पहल नही..! वर्षो से यह परेशानी अब तो मानो मानस पटल पर अंकित सी हो गयी है..! जैसे बारात जाना है पहले निकलो नही तो जाम में फस जाओगे..! साहिबगंज से यदि भागलपुर 75km की दुरी बाय रोड तय करनी हो तो आप की यात्रा मंगलमय हो.., किन्तु यह समझ लीजिये की यह दुरी भागलपुर की नही पटना के लिए आपने शुरू कर दिया है..! ना जाने अनजाने कितने लोगो का वैवाहिक लग्न पार हो गया होगा..?? कब तक हमारे जनप्रतिनिधि एवं जिला प्रसासन इसका निदान निकालेगी..?? समझ से परे है..!!  कारण यह है की यह समस्या नई नही है यह वर्षो-वर्षो पहले से विद्दमान है ..! समस्याएं है तो इसका निदान भी है किन्तु इस दिशा में कोई जिम्मेवारी लेने के लिए तैयार नही है..! जयंती, पुण्यतिथि, लोकतंत्र के लिए पर्व सिर्फ 100%वोटिंग करने से नही होगा..!उसके लिए हर एक तरह की फेसेलिटीज की आवश्यकता है..! विधानसभा और लोकसभा प्रतिनिधि अपने मेनिफेस्टो में शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार के साथ-साथ अपने जिले की जाम जैसी समस्याओ से भी निदान करवाएगी इस मुद्दे को शामिल करे..!



****************
भारत की धन्य धरा..!
भारत की इस धन्य धरा पर, 
सब अविरल निर्मल हर गंगा और ग्राम  है..!
सेवा से सींचते पूण्य धरा.., 
कहते इसी में अविराम है..!
सदा जीवन में रखे संजोये..,
आदर सत्कार की भावना.., 
विकराल रूप भी धरते.., 
मातृभूमि सेवा में करते.., 
दिनरात साधना..!
विश्व वैभव का अमन.., 
आरजू करवाते बच्चों से कामना..!
मन्दिर-मस्जिद की आवाजें.., 
सबके लिए मंगल मांगना..!
गुरुद्वारे भी बतलाये मातृभूमि के लिए.., 
डट के करो सामना..!

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वर्षो की पीड़ा आज आपके सामने..! 
एक के बदले 100 टारगेट करना होगा..!
जम्मू को काबू में करना है..,
तो हिटलर बनना होगा..!
लचर-पचर रवैया से नही..,
तानाशाह शासक बनना होगा..!
रौंद दो भटके युवा को..,
कश्मीर मांगे आजादी..,
आजादी के अर्थ अच्छे से सिखलाना होगा..!
भटके युवा की कहानी..,
जहाँ शुरू हुयी उसे वही दबाना होगा..!
आने वाले दिनों भारत में आग लगे..,
उससे पहले वही दफ़नाना होगा..!
सोच-सोच के कदम बढ़ाना है..!
तो और शहीदो को कन्धे लगाना होगा..!
हिम्मत है, हौसला है, फिर किस बात की डर..??
उन आतंकवादी पिल्लो को..,
जम्मू के चौराहो पर ही दफ़नाना होगा..!
आगे आये जो बचाने..,
एक के बदले 100 टारगेट करके चलना होगा..!
स्कूली बैग का बस्ता लेके..,
मुँह पे कफ़न का टुकड़ा बांधे..,
इनको भी आतंकवादी की सूची में डालना होगा..!
एक आतंकवादी के बदले..,
सौ (100) भटके युवा को टारगेट करना होगा..!
गोलियों की बरसात करना होगा..!
26 जनवरी का सैन्य प्रदर्शन,
दुश्मनो के सीने पर करना होगा..!
कुर्बानी की धधकती आग..,
शिव-तांडव का रूप देना होगा..!
एक आतंकवादी के बदले..,
100 भटके युवा को टारगेट करना होगा..!
करना होगा..!

~: जय हिन्द, जय भारत :~ 
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NICE सेल्फ़ी..!
नयी सदी की जान सेल्फ़ी, 
लोगो की पहचान सेल्फ़ी,
लोगो को मुर्ख बना रही सेल्फ़ी, 
झूठ का पोटली सेल्फ़ी, 
करिया को गोरा बनाती सेल्फ़ी, 
मोबाईल में जगह फ़ूल करती सेल्फ़ी, 
जीवन के साथ भी जीवन के बाद भी सेल्फ़ी, 
बड़ी मजेदार मजेदार सेल्फ़ी, 
बन्दरो के झुण्ड सेल्फ़ी, 
दिख नही रहा ले रहा हु सेल्फ़ी 
बहुत खुश रखता सेल्फ़ी 
एम आई फ़ोन बिक्री बढ़ी वजह बनी सेल्फ़ी 
दोस्तों कभी अपनों के साथ भी हो सेल्फ़ी 
माँ बाबूजी के साथ भी संजो के रखो सेल्फ़ी..! 
कभी कॉल भी कर लिया करो सेल्फ़ी..! 
माँ बाबूजी के साथ भी संजो के रखो सेल्फ़ी..! 
कभी कॉल भी कर लिया करो सेल्फ़ी..!