29 मार्च 2020

आलेख :- अंकित पाण्डेय..! رچانا :- انکیت پانڈے

क्रांति दिवस..!
आज़ादी के इतिहास में आज का दिन क्रांति दिवस के रूप में स्वर्ण अक्षरों में अंकित किया गया है। इतिहास में आज का दिन 29 मार्च 1857 अंग्रेज़ों के दुर्भाग्य के रूप में उदित हुआ था। इसी दिन 34 रेजीमेंट के सिपाही मंगल पाण्डेय अंग्रेज़ों के लिए प्रलय बन कर बरसे। क्रांति की शुरुआत 31 मई 1857 को होना तय था। परन्तु यह दो माह पूर्व 29 मार्च 1857 को ही आरम्भ हो गई। सिपाहियों को 1853 में एनफ़ील्ड बंदूक दी जाती थीं। 1857 में आयी नयी बंदूको में गोली भरने के लिये कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पड़ता था। कारतूस का बाहरी हिस्सा चर्बी की बनी होती थी। जैसे ही यह बात फ़ैल गई कि कारतूस में चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनायी जाती है। यह बात सिपाहियों को अपने धार्मिक भावनाओं के विरुद्ध लगा ।
29 मार्च 1857 को मंगल पाण्डेय ने नए कारतूस के प्रयोग से मना कर दिया और अंग्रेजी अफसर सार्जेंट को गोली मार कर क्रांति की शुरुआत की। इसी घटना के बाद भारत के विभिन्न हिस्सों में विद्रोह की आग भड़क उठी जो प्रथम आजादी आंदोलन के रूप में अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध चिंगारी बनकर उभरी। मंगल पाण्डेय पर मुक़दमा चला और 6 अप्रैल 1857 को मौत की सज़ा सुना दी गई। बागी बलिया के धरती पर जन्म लेकर क्रांति की मशाल को जलाने वाले उस महानायक के क्रांतिकारी योगदान को कदापि भुलाया नहीं जा सकता।


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साहिबगंज:- 28/11/2019. आज के समय में हम व्हाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया साइट्स के इतने दीवाने हो चुके हैं कि हम यह भूलते जा रहे हैं कि फोन के बाहर भी एक दुनिया है जो हम सबकी असल दुनिया है। हम सब अपने फोन के साथ और अपने व्हाट्सएप आदि के साथ इतना जुड चुके हैं कि हम इस मिराज में खो चुके हैं।
एक परिवार केवल चार दीवारों से नहीं बल्कि उसमें रहने वाले लोगों से बनता है। पर जब ये लोग फोन की दुनिया में कैद होने लगें तो उस परिवार की आत्मीयता और स्नेह की डोर कमजोर होने लगती है। धीरे-धीरे हम अपने परिवार के सदस्यों से ही अनजान होने लगते हैं।
जब हम एक-दूसरे से दूर होते हैं तो हमारे पास व्हाट्सएप और फेसबुक पर एक-दूसरे को बताने के लिए, खुशियाँ और दुख साझा करने के लिए बहुत कुछ होता है। पर जब हम असल दुनिया में साथ होते हैं, तो हम अपने परिवार को समय देने की बजाय अपने फोन को समय देते हैं।
दरअसल फोन पर बनाए गए रिश्तों में हम उन रिश्तों से नहीं जुडते हैं। हम जुडते हैं अपने सोशल मीडिया से, अपने फोन पर मौजूद आकर्षक स्टेटस से, लोगों की टेक्निकल खुशियों और दुख से और इस कारण एक परिवार साथ होते हुए भी दूर हो जाता है।
व्हाट्सएप और फेसबुक ने केवल परिवार ही नहीं बल्कि हर संबंध की मधुरता को छीन लिया है। कुछ ही दिनों पूर्व साहिबगंज में नवनिर्मित एक शॉपिंग मॉल के अन्दर कुछ पूर्वपरिचित मित्रों से आकस्मिक मुलाक़ात हुई...। यूं तो हम दिन-रात चैटिंग करते थे पर जब हम मिले तो हम दोनों ही बातें कम और अपने-अपने फोन में ज्यादा लगे हुए थे..। तब मुझे एहसास हुआ कि हम अपने-अपने फोन से और सोशल मीडिया से इस कदर तक बंध चुके हैं जंजीर में जो हमारे रिश्तों की डोर को तोड़ रहा है...।

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लगता है चुनाव के दिन आ गए...!

आ रहा अब चुनाव का दिन,
अब जोर-शोर मचने लगे,
हमारे शहर में भी नेताओं के,
समूह हर जगह अब लगने लगे।

लोकतंत्र के उत्सव का दिन,
अब नजदीक आने लगे,
मतदान करने को सभी है तैयार,
शहर में चुनावी डंका बजने लगे।

कुछ चिकनी चिकनी बातें करते, 
नेताजी के समर्थक अब घूम रहे,
देख सड़कों पर लोगों का जमावड़ा,
लगता है अब चुनाव के दिन आने लगे।

अब हर जगह दिखने लगे नेताजी,
जो कभी ईद के चांद हुआ करते थे,
फिर जनता की आंखों में धूल झोंकने,
देखिए वो चुनावी मेला सजाने लगे।

ऊंचे ख्वाब दिखाने हेतु नेताजी,
वादे पर वादे गिनाने लगे,
फिर से पांच साल सत्ता जमाने,
बनावटी नए रिश्ते बनाने लगे।

कहीं मांस मदिरा और भोजन,
कहीं पैसा भी बांटने लगे,
प्रलोभन की हाहाकार मची,
शहर में चुनावी डंका बजने लगे।

अब यह अम्मा चाचा ताऊ,
कहकर गली-गली लहराते हैं,
बेबस और असहाय जनता से,
अजीब सहानभूति दिखाने लगे।

भाषण देने के लिए नेताजी,
जन समूह इकट्ठा कर लिये,
जुमले वाले वादों से अपने, 
वो चुनावी मेला सजाने लगे।

पार्टियों के प्रत्याशियों के बीच,
जुबानी जंग शुरू होने लगे,
कोई लाल,नीला तो कोई पीले
झंडे को थामे दिखने लगे।

जनता का राज होगा अबकी बार,
कह नेताजी चुनावी सपना दिखाने लगे,
वोटों का मोल भाव अब दिख रहा है,
शहर में चुनावी डंका बजने लगे।

मैं हूं लायक इस क्षेत्र के विकास हेतु
जनता से सभी प्रत्याशी कहने लगे,
नीचे गिराने अपने अपने विरोधी को,
सभी चालबाजी का खेल चलने लगे।

देख जनमानस लगा हंसने,
गिरगिट सा खेल नेताओं के,
अपने ही सपने सच करने को,
नेताजी चुनावी मेला सजाने लगे।

डीजे संगीत और पोस्टर के साथ, 
नेताजी चुनाव प्रचार करने लगे,
जनता के हको से फिर से खेलने को,
झूठे वादे वाले नेता फिर चहकने लगे।

अपना शहर भी चुनावी रंग में डूबा,
नेताजी चुनावी मेला सजाने लगे,
वोटों की भीख मांगने के लिए,
शहर में चुनावी डंका बजने लगे।

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एक बचपन का जमाना था,

जिसमें खुशियों का खजाना था,
चाहत थी चांद को पाने की,
पर मन गोलगप्पे का दीवाना था।

खबर ना रहती थी सुबह की 
और ना शाम का ठिकाना था,
थक कर आना स्कूल से 
पर खेलने भी जाना था।

मां की कहानी थी,
यारों का दोस्ताना था,
खेलते हुए हाथों में गेंदे थी,
झगड़ा करना भी एक याराना था।

हर खेल हर समय में साथी थे,
साथ ही खुशी और गम बांटना था।
कुछ सोचने का ख्याल ना रहता था,
हर पल हर समय सुहाना था।

बारिश में कागज की नाव थी,
ठंड में मां का आंचल था,
ना रोने की वजह थी,
ना हंसने का कोई बहाना था।

वो रातो में मां की कहानियां थी,
वो नंगे पांव ही दौड़ना था,
वह बहुत गुस्सा आने पर, 
जमीन में पांव को रगड़ना था।

वह नए-नए उपहार पाकर, 
खुशी से झूमना था,
बचपन होता कितना प्यारा था,
ना किसी से कोई भेदभाव था।

हर किसी से दोस्ती का ख्याल था,
किसी से ईर्ष्या न रखने का स्वभाव था,
कोई लौटा दे मेरे बचपन को, 
कितना सुंदर वो जमाना था।
क्यों हो गए इतने बड़े हम,
इससे अच्छा तो बचपन का जमाना था।।

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बचपन है ऐसा खजाना

आता है ना दोबारा
कूदना और खाना,
मौज मस्ती में बौखलाना,
वो माँ की ममता और वो पापा का दुलार
भुलाये ना भूले वह सावन की फुवार,
मुश्किल है इन सभी को भूलना

वह कागज की नाव बनाना
वो बारिश में खुद को भीगना
वो झूले झुलना और खुद ही मुस्कुराना 
वो यारो की यारी में सब भूल जाना
और डंडे से गिल्ली को मरना
वो अपने होमवर्क से जी चुराना
और teacher के पूछने पर तरह तरह के बहाने बनाना
बहुत मुश्किल है इनको भूलना

वो exam में रट्टा लगाना
उसके बाद result के डर से बहुत घबराना
वो दोस्तों के साथ साइकिल चलाना
वो छोटी छोटी बातो पर रूठ जाना
बहुत मुस्किल है इनको भुलाना…

वो माँ का प्यार से मनाना
वो पापा के साथ घुमने के लिए जाना
और जाकर पिज्जा और बर्गेर खाना
याद आता है वह बिता हुआ जमाना
बचपन है एक ऐसा खजाना,
बहुत मुश्किल है इसको भूल पाना।

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छट पूजा पर..!

छठ पूजा में जो तू चाहे वो तेरा हो
हर दिन खूबसूरत और रातें रोशन हों
कामयाबी चूमते रहे तेरे कदम हमेशा
छठ पूजा की बहुत बधाई हो
हैप्पी छठ पूजा..!
छठ पूजा का पावन पर्व है, 
सूर्य देव की पीजा का पर्व
करो मिल के सूर्य देव को प्रणाम, और बोलो सुख शांति दे अपार।
सुबह उगा है सूरज, अर्घ्य सांझ को देना है
पूरे दिन हमें छठ मैया का नाम लेना है,
अगली सुबह जीवन में नई खुशहाली लाएगी,
छठ मैया आपके सब मनोरथ पूरे कर जाएगी।।
सुनहरे रथ पर होके सवार,
सुर्य देव आएं हैं आपके द्वार,
छठ पर्व की शुभकामनाएं
मेरी ओर से करें स्वीकार
हैपी छठ पूजा!
एक पूरे साल के बाद
छठ पूजा का दिन आया है
सूर्य देव को नमन कर
हमने इसे धूमधाम से मनायेंगे।
कदुआ भात से होती है पूजा की शुरुआत,
खरना के दिन खाते हैं खीर में गुड़ और भात।
सांझ का अर्घ्य करता है, जीवन में शुभ शुरुआत
सुबह के अर्घ्य के साथ, पूरी हो आपकी हर मुराद।
सूर्यदेव से करते हैं प्रार्थना,
सभी को मिले सुख शांति अपार।
फिर से हैप्पी छठ पूजा,
आप सभी को बार-बार।