ऐसा डूबा चाँद, अब तक दीद नहीं।
वर्षों गुज़र गए, महफ़िल में ईद नहीं।।
हर रोज़ रोज़ा है यहां, सुरूर निराली है।
मयखाने में भोर हुई, हर शाम दिवाली है।।
हर वक़्त सज़दे में , यह नमाजी है।।
अफ्तारी में मय है, साथ प्याली है।।
दीदार करूँगा कब, यह मुफ़ीद नहीं।
कितना लम्बा रमजान, देखूंगा जिद्द यही।।
ऐसा डूबा चाँद, अबतक दीद नहीं।
वर्षों गुज़र गए, महफ़िल में ईद नहीं।।
निकलेगा चाँद इक रोज, दिल में उम्मीद यही।
इसी आश में जिये जाते हैं, मनाएंगे ईद कभी।।
ये तमन्ना होगी पूरी, होंगे चश्मदीद सभी।
मिठास सेवइयों की, और बाटूँगा ईदी भी।।
ऐसा डूबा चाँद, अबतक दीद नहीं।
वर्षों गुज़र गए, महफ़िल में ईद नहीं।।
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नेक्स्ट-न्यूज़
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साहिबगंज 30/06/2017
CNT - SPT Act आदिवासियों को 19 वीं सदी में संरक्षित करने के उददेश्य से बनाई गयी थी, जो 21 वीं सदी में उसके विकास में बाधक कैसे हो गई यह आदिवासी समाज को समझने की आवश्यकता है----
1- यह एक्ट इस समाज को अन्य के मुकाबले सामान अवसर नहीं देता। इनके पास सीमित आकाश है जीवन का उड़ान भरने के लिए।
2- इस एक्ट के कारण आदिवासी समाज को उनके अचल संपत्ति का सही मूल्य नहीं मिल पाता। जिससे वे अपने जीवन स्तर को नहीं बदल पाते। 3- यह एक्ट इस समाज को समाज के अन्य वर्ग से अलग करता है। नतीजतन सापेक्षिक विकास में ये पीछे छूट जाते है 4- इस एक्ट के कारण भूमि अधिग्रहण में सरकार को कठिनाई होने की वजह से आधारभूत संरचना यथा सड़क, रेल, बिजली, पानी, यातायात, अच्छे स्कूल-कॉलेज, अस्पताल एवं संचार की सुविधाएँ विकसित नहीं हो पा रही है। आज भी संथाल परगना में जिला मुख्यालय तक रेल सुविधा से वंचित है।
5, इस एक्ट के कारण यहाँ उद्योग-धंधे, कल-कारखाने, निजी व्यपार-व्यवसाय नही स्थापित हो सकते है, जिससे यहाँ रोजगार का पर्याप्त अवसर उपलब्ध नहीं है नतीजतन बेरोजगारी, अशिक्षा, अंधविश्वास, कुरीति, नशाखोरी का प्रचलन अधिक है।
6- यह क्षेत्र पठारी होने के कारण यहाँ खेती से अधिक उद्योग-धंधों, कल- कारखानों का विकास होने के अनुकूल माहौल है। सोचने की जरुरत है, हम अपने सोच को अनुकूल बना सकारात्मक दिशा में काम करें तो इस राज्य को "भारत का गरूर" बना सकते है।
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नेक्स्ट-न्यूज़
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साहिबगंज 08/06/2017
बेटी
कभी-कभार दीखती हो तुम
डेढ़-दो फीट के झरोखे से
झांकती कैदी की तरह।
औरो की नजरों से बचते-बचाते
नज़रों की तपीश बुझाते
निकल जाता हूँ, मुलाकाती की तरह।
तुम देखती हो, इन झरोखों से
अपना संपूर्ण संसार, पर यह संसार
बिलकुल अधूरा है, तुम्हारी तरह।।
शायद! बेटी एक जिह्वा है
जिसे हमने कैद कर रखा है
सुसज्जित दंत-पंक्तियों के भीतर
जबड़ों के बीच,
पिटारी में बंद सापिन की तरह।
नहीं-नहीं, बेटी तो आरती है
निरंतर जलती है !
मंदिर के दीप की, बाती की तरह
हमने समझाया है सदैव उसे,
कर्तव्यों की भाषा।
यह भी बताया है उसे,
कि कभी अधिकार की बात न करना भी
उसका कर्तव्य है।
उसे जीना है, बस एक दासी की तरह।।
बेटी!
तुम्हें तो इस खूँटे या उस खूँटे
बँध कर ही रहना है
क्यों फड़फड़ाती हो चंचल गौरैये की तरह।
चंचल गौरैये की तरह !
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5 जून पर्यावरण दिवस पर विशेष अभिव्यक्ति।
चीथड़े उड़े पहाड़ों के,
जीवन के लिए बचाना होगा।
धूल-धूसरित वन-प्रान्तरों में,
हरियाली फिर से लाना होगा।।
राजमहल पहाड़ी का सौंदर्य,
पुनः अब सजाना होगा।
अन्यथा उमड़ते-घुमड़ते बादलों को,
प्रतिवर्ष लौटना होगा।।
झारखंड बना, क्या इसलिये?
पहाड़ों को खंड-खंड करना होगा।
बिखरता बादल, सूखते झरने, जलता सूरज-- हलकों का प्यास बुझाना होगा।।
झरनों का कलकल बंद हुआ,
चहचहाते पक्षी बचाना होगा।
धूल-गर्द में खोती जिंदगी,
बच्चों का बसंत बचाना होगा।।
गर बांसुरी की धुन सुननी है,
बांसों को भी होना होगा।
यूँ ही पत्थर-पहाड़ कटते रहे तो,
ऑक्सीजन की फैक्ट्री लगाना होगा।।
जंगल सारे कटते जा रहे,
वनौषधियों को बचाना होगा।
वन्य-प्राणियों को विनष्ट किया,
खुद जानवर सा रहना होगा।।
प्रेम-सहानुभूति नष्ट हुई,
मानवों की दरिंदगी झेलना होगा।
इन पर्वत-शृंखलाओं का सौंदर्य
अक्षुण्ण रखने को यहाँ भी,
चिपको-सा आंदोलन चलाना होगा।।
चीथड़े उड़े पहाड़ों के,
जीवन के लिए बचाना होगा।
धूल-धूसरित वन-प्रान्तरों में,
हरियाली फिर से लाना होगा।।
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साहिबगंज 05/06/2017
5 जून पर्यावरण दिवस पर विशेष अभिव्यक्ति।
कलकल करते, गिरते झरने
दूर ऊँचाई से आते झरने।
सुंदर गीत सुनाते झरने
मीठा जल पिलाते झरने।
सनसनाती हवाओं का झोंका
खनखनाती गौओं का झुँड
चहचहाती पंक्षियों के कलरव से घुलमिल
कलकल गीत सुनाते झरने।
ऊँचे नभ से बतियाते झरने
जीवन की हरसाते झरने।
हल्के फुहार उड़ाते झरने
कुछ कहते-कहते रुक जाते झरने।।
आते झरने - जाते झरने
कोमल गीत सुनाते झरने।
हल्कों का प्यास बुझाते झरने
कलकल करते, गिरते झरने
दूर ऊँचाई से आते झरने।।
----आनन्द अमन
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साहिबगंज 01/06/2017
श्रीमती जी !
श्रीमती जी बनाती है------बात, भात और हालात
हम दंभ के मारे, किससे कहें -----विवश होते हैं किस तरह, हमारे ख्यालात !
हम कहते हैं उनकी रात को रात,
दिन को दिन ।
जीता हूँ, बस उनकी नसीहते गिन-गिन।।
बिगड़ जाये न कभी, वोट का मिजाज
आधी आबादी की फिक्रमंद रहता हूँ।
सर भी दबाता हूँ, पांव भी दबाता हूँ।।
फूलों की सेज़ पर, उन्हें सुलाता हूँ।
नाज़-नखरों को उनकी, सर पे उठाये
बाँहों की झूलों में, उसको झुलाता हूँ।।
सच-सच कहता हूँ, उन्हीं की धुन आठों पहर गुनगुनाता हूँ।
किसी से कह भी देना यारों, मैं दुनियाँ से थोड़े शरमाता हूँ।।
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साहिबगंज 31/05/2017
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साहिबगंज 11/05/2017
21वीं सदी में कवि
ढूंढता है श्रोता
लिखता है कम कविता।
क्रांतियाँ अब फूटती नहीं
कविताओ से,
अपने अस्तित्व की रक्षा में
हर रोज कवि करते है--
क्रांतियाँ, श्रोताओं से।।
अब कविताएँ होती नहीं ग्राम्य-जीवन पर
हाड़-मांस के मानव पर
नित-प्रतिदिन
मानवता कुचली जाती है।
कविताओं का विषय घुमने
राजभवन जाती है।
घोटालों की चर्चा का,
विज्ञापन कविता होता है।
नेताओ के चरित्र का, गिरता ग्राफ़
कवियों का प्राण होता है।।
21वीं सदी में कवि, ढूंढ़ता है श्रोता
लिखता है कम कविता।।
अब मेहबूब की गाल
लगती है प्याज की छाल।
कवियों की कल्पना में
खिली कुमुदनी फूल नहीं होती।
कवियों को दिखता है
परमाणु विस्फोट।
दिखती नहीं, इसके पीछे छिपी ।
करोड़ों दिलों की चोट।।
हे कवि महोदय!
आप कविताओं के माध्यम से
अपनी पहचान बताते हैं
फिर क्यों नहीं,
आलोचना-प्रशंसा से हटकर
अपनी विषय बनाते हैं -
अपनी विषय बनाते हैं।
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साहिबगंज 11/05/2017
साहिबगंज के तीनपहाड़ आईटीआई कॉलेज में गुरुवार 11 मई को बीजेपी जिला कार्यसमिति की बैठक जिलाध्यक्ष संजय गुप्ता की अध्यक्षता में संपन्न हुई। इस बैठक में प्रदेश प्रभारी बबलू भगत, बोरियो विधायक ताला मरांडी, पूर्व विधायक बेनी गुप्ता, पूर्व जिलाध्यक्ष रणधीर सिंह, प्रदीप अग्रवाल, साहेबगंज नगर पर्षद राजेश गौड़, पाकुड़ नगर पर्षद अध्यक्ष बाबुधन मुर्मू, प्रदेश नेत्री शर्मिला रजक, मिस्फीका, अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश महामंत्री नजीबुल हक़ समेत सभी मंडलों के मंडल अध्यक्ष, महामंत्री व जिला के पदाधिकारी उपस्थित थे। मंच संचालन जिला महामंत्री कुंदन सिंह व महामंत्री छट्ठू लाल साह ने धन्यवाद ज्ञापन किया। मौके पर संगठन एवं सरकार की उपलब्धियों पर चर्चा हुई।
जिन लोगों ने किया है SPT व CNT act का उल्लंघन वही लोग कर रहे है संशोधन का विरोध : ताला
साहिबगंज। SPT व CNT act में संशोधन होने से जिन आदिवासियों को अब तक की सरकार ने बेवकूफ बनाने का काम किया है उनकी पोल खुल जायेगी। विरोध करने वाले वही लोग है जिन्होंने भोलेभाले आदिवासियों को लूटने व ठगने का काम किया है। उनकी जमीन को औने-पौने में लेकर बड़ी संपत्ति इकट्ठा किया है। इस एक्ट में प्रस्तावित संशोधन से आदिवासियों को उचित मुवावजा मिलेगा। वही यदि निर्धारित अवधि में जमीन का उपयोग नहीं हुआ तो जमीन का मालिकाना हक़ जमीन मालिक का सुरक्षित रहेगा।
हमे यह पता होना चाहिए की इस एक्ट का विरोध करने वाले जयपाल सिंह से शिबू सोरेन तक चले झारखंड आंदोलन को संसद में साढ़े तीन करोड़ में बेचने का काम किया है। जबकि मा. प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जी के द्वारा इस राज्य को अस्तित्व में लाने का शुभ कार्य किया गया । इसलिए इस राज्य के विकास की जिम्मेदारी भी हमारी है। हमे इन दलालों से बचने की जरुरत है। भारतीय जनता पार्टी अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने वाली पार्टी है। उक्त बातें बोरियो विधायक ताला मरांडी ने साहिबगंज जिला कार्यसमिति की तीनपहाड़ आईटीआई कॉलेज में आयोजित बैठक में अपने सम्बोधन में कही।
उन्होंने कार्यकर्ताओं को कहा की देश आज मा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथ में सुरक्षित है । देश सतत् विकास की दिशा में चल पड़ा है। श्री मोदी जी ने ST, SC, OBC, MBC वर्ग के पिछड़े लोगों को जो कहीं समाज में पीछे छुट गए थे। उनके विकास को अपना लक्ष्य बनाया है। आदिम जनजाति बटालियन उनके इसी सोच का परिचायक है। हमें गर्व है कि हमारे प्रधानमंत्री हमें चोरी-छुपे गरीब आदिवासियों की जमीन लूटने वालों से हमारी रक्षा करने के लिए कटिबद्ध है।
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साहिबगंज 10/05/2017
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अपनी व्यथा
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अपनी ही तस्वीर से घबराने लगा हूँ।
जिंदगी की वसूलों से कतराने लगा हूँ।।
सिद्धान्तों से समझौता, आखिर कब तक
अपनी जमीर से ही, पीछा छुड़ाने लगा हूँ।
सच्चाई और नीति के रास्ते, इतने कठिन न थे।
जितनी तेजी से ईमान से, डगमगाने लगा हूँ।।
अपनी ही तस्वीर से घबराने लगा हूँ।
जिंदगी की वसूलों से कतराने लगा हूँ।।
चंद सिक्कों में क्या बात थी? न मालूम।
पूरी जिंदगी को दाँव पे लगाने लगा हूँ।।
ख्वाब चूर हो गए, अपने अलग वज़ूद की।
दुनियाँ के साथ चलने का, साहस जुटाने लगा हूँ।
अपनी ही तस्वीर से घबराने लगा हूँ।
जिंदगी की वसूलों से कतराने लगा हूँ।।
कोई पापी त्याज्य नहीं, यही समझकर
मानवतावाद का नारा, बुलंद करने लगा हूँ।।
कोई बहाना नहीं,हम लाचार थे-बीमार थे।
शौक से ही खुद को, डूबोने लगा हूँ।।
जिसे समझा था हमने, समाज का आदर्श
उसे ही देखकर, शरमाने लगा हूँ।।
क्यों खोदने पर तुले हो, दूसरे का खोखलापन।
खुद के खोखलेपन से ही, तड़पने लगा हूँ।।
मंदिर का रास्ता तो, अब बंद हुआ शाकी।
मयखाना, कभी-कभी जाने लगा हूँ !
जमीर कहती है--- हमने देखा ही था क्यों इस ओर ।
घबराकर, दुनियाँ को ही दोष देने लगा हूँ।।
अपनी ही तस्वीर से घबराने लगा हूँ।
जिंदगी की वसूलों से कतराने लगा हूँ।।
-- आनंद अमन --
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